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शे'र
क़फ़स में भी वही ख़्वाब-ए-परेशाँ देखता हूँ मैंकि जैसे बिजलियों की रौ फ़लक से आशियाँ तक है
बेदम शाह वारसी
शे'र
फ़स्ल-ए-बहार में तो क़ैद-ए-क़फ़स में गुज़रीछूटे जो अब क़फ़स से तो मौसम-ए-ख़िज़ाँ है
हैरत शाह वारसी
ग़ज़ल
क़फ़स की तीलियों से ले के शाख़-ए-आशियाँ तक हैमिरी दुनिया यहाँ से है मिरी दुनिया वहाँ तक है
बेदम शाह वारसी
ग़ज़ल
बस-कि हूँ दिल-तंग ख़ुश आता है सहरा-ए-क़फ़सबुलबुल-ए-बे-बाल-ओ-पर रखती है सौदा-ए-क़फ़स
ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
रूमी
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
ऐ ग़म्ज़: ज़न कि तीर-ए-जफ़ा दर कमान-ए-तुस्तआहिस्तः ज़न कि गर्दन-ए-मा दर इ’नान-ए-तुस्त
अमीर ख़ुसरौ
फ़ारसी कलाम
ऐ कि दर ज़ाहिर मज़ाहिर आश्कारा कर्द:ईसिर्र-ए-पिन्हान-ए-हुवीयत रा हुवैदा कर्द:ई