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ग़ज़ल
ऐ दिल-ए-ग़फ़ल-तज़दा बेदार हो सोता है क्याउ'म्र आख़िर हो चुकी अब देखे होता है क्या
शाह तुराब अली क़लंदर
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विषय
दिल
दिल
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जुदाई
जुदाई
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फ़ारसी सूफ़ी काव्य
ऐ ज़दः नाविकम ब-जाँ यक दो सेह चार-ओ-पंच-ओ-शिशकुश्त: चू बंद: हर ज़माँ यक दो सेह चार-ओ-पंच-ओ-शिश
अमीर ख़ुसरौ
शे'र
ख़ून-ए-दिल जितना था सारा वक़्फ़-ए-हसरत कर दियाइस क़दर रोया कि मेरी आँख में आँसू नहीं
मुज़्तर ख़ैराबादी
ग़ज़ल
क़ाफ़िला अरमान-ओ-हसरत का हमारे दिल में हैजब से इस मंज़िल में आया है इसी मंज़िल में है
बर्याँ इलाहाबादी
ग़ज़ल
अश्क आँखों में फ़ुग़ाँ होंटों पे हसरत दिल में हैइक नई सूरत से ज़ाहिर इ'श्क़ हर मंज़िल में है
हादी मछली शहरी
कलाम
न किसी चीज़ में दिल उन का लगा मेरे बा'दयाद आती ही रही मेरी वफ़ा मेरे बा'द
मौलाना अ’ब्दुल क़दीर हसरत
बैत
उस की हसरत है जिसे दिल से मिटा भी न सकूँ
उस की हसरत है जिसे दिल से मिटा भी न सकूँढूँडने उस को चला हूँ जिसे पा भी न सकूँ