न किसी चीज़ में दिल उन का लगा मेरे बा'द
न किसी चीज़ में दिल उन का लगा मेरे बा'द
मौलाना अ’ब्दुल क़दीर हसरत
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न किसी चीज़ में दिल उन का लगा मेरे बा'द
याद आती ही रही मेरी वफ़ा मेरे बा'द
अब तो मैं राह-रौ मुल्क-ए-'अदम होता हूँ
तिरा हर हाल में हाफ़िज़ है ख़ुदा मेरे बा'द
छोड़ कर मुझ को अगर जाते हो जाओ लेकिन
न मिलेगा तुम्हें पाबंद-ए-वफ़ा मेरे बा'द
जान प्यारी है तो तुम प्यार किसी से न करो
कोई 'उश्शाक़ में कर दे ये निदा मेरे बा'द
बे तिरे में तो तड़पता ही रहा रात तमाम
सच बता दे तिरा क्या हाल हुआ मेरे बा'द
मैं जो मरता हूँ बला से मुझे मर जाने दे
तो बुरा हाल ख़ुदारा न बना मेरे बा'द
मकतब-ए-'इश्क़ में मा'लूम नहीं लेगा कौन
दरस-ए-उफ़्तादगी-ओ-दरस-ए-फ़ना मेरे बा'द
अपने मरने की नहीं फ़िक्र मुझे फ़िक्र ये है
कौन उठाएगा तिरे जौर-ओ-जफ़ा मेरे बा'द
ज़िंदगी भर कोई 'हसरत' न निकाली दिल की
नौहा करते हुए गर आए तो क्या मेरे बा'द
- पुस्तक : सुरूद-ए-रूहानी (पृष्ठ 311)
- संस्करण : Second
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