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शे'र
दहन है छोटा कमर है पतली सुडौल बाज़ू जमाल अच्छातबीअत अपनी भी है मज़े की पसंद अच्छी ख़याल अच्छा
शाह अकबर दानापूरी
ग़ज़ल
दहन है छोटा कमर है पतली सुडौल बाज़ू जमाल अच्छातबी'अत अपनी भी है मज़े की पसंद अच्छी ख़याल अच्छा
शाह अकबर दानापूरी
सलोक
फ़रीदा विछोड़ा बुर्यारु जिति विछड़े जग दुबला
फ़रीदा विछोड़ा बुर्यारु जिति विछड़े जग दुबलाते माहनु हैस्यार विछुड़ि के मोटे थीवन
बाबा फ़रीद
गूजरी सूफ़ी काव्य
गधा चरे तो हो दुबला न नखें मोटा होए
गधा चरे तो हो दुबला न नखें मोटा होएन जानो खाए किस दुखों झर-झर पिंजरा होए
शैख़ बहाउद्दीन बाजन
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बैत
ज़फ़र इक ख़ाक का पुतला है यारो
ज़फ़र इक ख़ाक का पुतला है यारोपर उस में बोलता क्या जाने क्या है
अज्ञात
शे'र
इस से पहले आँख की पुतली की क्या औक़ात थीतेरे नुक़्ता देते ही क्या क्या नज़र आने लगा
मुज़्तर ख़ैराबादी
गूजरी सूफ़ी काव्य
पुतली नयन फुला पलक बराये-दिगर ख़ुद मस्त है
पुतली नयन फुला पलक बराये-दिगर ख़ुद मस्त हैसियाही सपेदी मस्त-ए-ख़ुद इज़ा में है नासूर मस्त
पीर सय्यद मोहम्मद अक़दस
साखी
प्रेम का अंग - नैनों की करि कोठरी पुतली पलँग बिछाय
नैनों की करि कोठरी पुतली पलँग बिछायपलकों की चिक डारि कै पिय को लिया रिझाए
कबीर
दोहरा
बामहि बाँधी पोटली हाड़ै बाँधा कोद
बामहि बाँधी पोटली हाड़ै बाँधा कोदएकै नारी जंग उप्या कोउ बांभन कोउ सोद
अब्दुल क़ुद्दूस गंगोही
ग़ज़ल
ख़ाक के पुतले ने देख क्या ही मचाया है शोरजिन्न-ओ-मलक के ऊपर कर रहा है अपना ज़ोर