दहन है छोटा कमर है पतली सुडौल बाज़ू जमाल अच्छा
दहन है छोटा कमर है पतली सुडौल बाज़ू जमाल अच्छा
तबी'अत अपनी भी है मज़े की पसंद अच्छी ख़याल अच्छा
इन आँखों में फिरती है वो सूरत ये चलता-फिरता जमाल अच्छा
मिला-जुला है वो 'आशिक़ों से ये मेल प्यारा विसाल अच्छा
निगाह का रुख़ तो मेरी जानिब मगर ये दिल और ही तरफ़ है
चलन तुम्हारा छुपा नहीं है मुझी से चलते हो चाल अच्छा
हम अपनी हस्ती मिटा रहे हैं उस की मश्क़ अब बढ़ा रहे हैं
ये ज़मज़मे लब पर आ रहे हैं कमाल से है ज़वाल अच्छा
जबीं हमारी तुम्हारा चौखट हमारी आँखे तुम्हारा जल्वा
तुम्हारी सीरत हमारी सूरत जो यूँ मिलें तो विसाल अच्छा
हमारी तक़दीर जाग उट्ठी ये दिन दिखाए कि आप आए
ये रोज़ अच्छा ये रात अच्छी ये माह अच्छा ये साल अच्छा
ग़म-ए-मोहब्बत है ख़्वान-ए-ने'मत इसी की तल्ख़ी है शहद-ए-जन्नत
ये रंज है ख़ुश-गवार 'अकबर' ये हाल अच्छा वबाल अच्छा
- पुस्तक : जज़्बात ए अकबर (पृष्ठ 37)
- रचनाकार :शाह अकबर दानापूरी
- प्रकाशन : आगरा अख़बार प्रेस, आगरा (1915)
- संस्करण : First
- पुस्तक : शाह अकबर दानापूरी हयात और शाएरी (पृष्ठ 140 -E139)
- रचनाकार : तलहा रिज़्वी बर्क़
- प्रकाशन : लेबल लिथो प्रेस, पटना (1985)
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