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रफ़ीक़ ऐसा नज़र आया न कोई आज तक मंज़रजो होता हम-नशीं अपना जो होता ग़म-गुसार अपना
वीरान और हुस्न का मंज़र लिए हुएअल्लाह रे दिल-ए-तख़य्युल दिलबर लिए हुए
तेरे जाने का वो मंज़र दिलरुबा अच्छा लगाराह में मुड़ मुड़ के तेरा देखना अच्छा लगा
आँखों में रंग-ओ-नूर का मंज़र समेट लोजो दिल को दे सुकून वो पैकर समेट लो
किसी दर्दमंद के काम आ किसी डूबते को उछाल देये निगाह-ए-मस्त की मस्तियाँ किसी बद-नसीब पे डाल दे
इ'श्क़ की हद से निकलते फिर ये मंज़र देखतेकाश हुस्न-ए-यार को हम हुस्न बन कर देखते
Jashn-e-Rekhta | 13-14-15 December 2024 - Jawaharlal Nehru Stadium , Gate No. 1, New Delhi
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