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मदीनः के जिस शाम-ओ-सहर की बात करते हैं

क़ैसर वारसी

मदीनः के जिस शाम-ओ-सहर की बात करते हैं

क़ैसर वारसी

MORE BYक़ैसर वारसी

    मदीनः के जिस शाम-ओ-सहर की बात करते हैं

    ब-अल्फ़ाज़-ए-दिगर ख़ुल्द-ए-नज़र की बात करते हैं

    सितारों की हम हुस्न-ए-क़मर की बात करते हैं

    जमाल-ए-हज़रत-ए-ख़ैरुलबशर की बात करते हैं

    मुबारक ज़िक्र-ए-जन्नत आप को हज़रत-ए-वाइज़

    हम अपने जज़्ब-ए-दिल ज़ौक़-ए-नज़र की बात करते हैं

    मुक़ाबिल रू-ए-ख़त्मुल-मुर्सलीं के चाँद क्या शय है

    वो दीवाने हैं जो शम्स-ओ-क़मर की बात करते हैं

    कहा है जिस को रब्बुल-आलमीं ने रहमत-ए-आलम

    हम उस मुश्किल-कुशा उस चारः-गर की बात करते हैं

    नज़र में है जमाल-ए-गुम्बद-ए-ख़ज़रा की रानाई

    फ़लक रिफ़अत नबी के पाक दर की बात करते हैं

    वो जिस की ज़ात आली नाज़िश-ए-कौनैन है 'क़ैसर'

    उसी फ़ख़्रुल-रुसुल ख़ैरुल-बशर की बात करते हैं

    स्रोत :
    • पुस्तक : तज़किरा शोरा-ए-वारसिया (पृष्ठ 182)
    • प्रकाशन : फाइन बुकस प्रिंटर्स (1993)
    • संस्करण : First

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