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ना'त-ओ-मनक़बत
हाथ में दामान-ए-शाह-ए-दो-जहाँ रखता हूँ मैंअपने क़ब्ज़ा में ज़मीन-ओ-आसमाँ रखता हूँ मैं
बहज़ाद लखनवी
ना'त-ओ-मनक़बत
हाथ में ले कर ये बोले मुर्तज़ा कुछ और हैमर्तबा तेग़-ए-नबी का बा-ख़ुदा कुछ और है
उबैद ख़ान मोहसिन
ना'त-ओ-मनक़बत
है लब-ए-ईसा से जाँ-बख़्शी निराली हाथ मेंसंग-रेज़े पाते हैं शीरीं मक़ाली हाथ में
अहमद रज़ा ख़ान
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ना'त-ओ-मनक़बत
मँगते ख़ाली हाथ न लौटे कितनी मिली ख़ैरात न पूछोउन का करम फिर उन का करम है उन के करम की बात न पूछो
ख़ालिद महमूद नक़्शबंदी
ग़ज़ल
मय-कशो क्या ज़िंदगी है साक़ी-ए-ख़ुद-सर के हाथफ़स्ल-ए-गुल में बिक गए हैं शीशा-ओ-साग़र के हाथ
ज़ुहूर असदक़ी
सूफ़ी उद्धरण
मुरीद और पीर का संबंध ऐसा है, जैसे कपड़े में पैबन्द। सच्चा मुरीद, पीर के कहने पर चलता है और उस की मिसाल सफ़ेद कपड़े में लगे सफ़ेद पैबन्द की है, जो धोने पर धुल जाता है और असली कपड़े में ही मिल जाता है। पीर को पहुँचने वाला रूहानी फ़ैज़ ऐसे मुरीद को भी पहुँचता है। रस्मी मुरीद की मिसाल ऐसी है, जैसी सफ़ेद कपड़े पर काला पैबन्द। जिसे पीर का फ़ैज़ तो मिलता है, मगर असली चीज़ कम ही हाथ आती है। रस्मी मुरीद, अगर नेक होगा तो उस वजह से जाना जाएगा और बुरा होगा तो पीर के तुफ़ैल बख़्शा जाएगा। ये दौलत भी कम नहीं है। बहरहाल! पीर ज़रूर होना चाहिए।
मुरीद और पीर का संबंध ऐसा है, जैसे कपड़े में पैबन्द। सच्चा मुरीद, पीर के कहने
शैख़ हुसामुद्दीन मानिकपुरी
शे'र
कूचा-ए-क़ातिल में जाकर हाथ से रक्खें तुझेओ दिल-ए-बेताब हमने इसलिए पाला नहीं
मिर्ज़ा फ़िदा अली शाह मनन
शे'र
तिरे हाथ मेरी फ़ना बक़ा तिरे हाथ मेरी सज़ा जज़ामुझे नाज़ है कि तिरे सिवा कोई और मेरा ख़ुदा नहीं
कामिल शत्तारी
शे'र
मैं हाथ में हूँ बाद के मानिंद पर-ए-काहपाबंद न घर का हूँ न मुश्ताक़ सफ़र का