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दोहा
खाओ हलाल बोलो मुख सांचा राखो दुरुस्त ईमान।
खाओ हलाल बोलो मुख सांचा राखो दुरुस्त ईमान।छोडो जंजाल झूठी सब माया जो मन होए ज्ञान।।
क़ाज़ी महमूद दरियाई
दोहा
कलमा शहादत तिल न बिसारो जिसथी छूटो निदान।
कलमा शहादत तिल न बिसारो जिसथी छूटो निदान।महमूद मुख थी तिल न बिसरे अपने अल्लाह का नाम।।
क़ाज़ी महमूद दरियाई
दोहा
मन में गरब तू मत करे, तुझ बैन कई लाख।
मन में गरब तू मत करे, तुझ बैन कई लाख।तेरा कहिया कौन सूने, महमूद कूं सो माख।।
क़ाज़ी महमूद दरियाई
गूजरी सूफ़ी काव्य
उक़दा दर बिलावल
जाग प्यारी अब क्या सोवे,रैनी केनी त्यूं दिन क्या खोवे।
क़ाजी महमूद बहरी
गूजरी सूफ़ी काव्य
उक़दा दर परदा अनारकली
आए न देखे मुझकूं तन लोहू न मासा,हूँ जूरूं तुझ कारने और रोय लेउं निसासा।