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ज़रा आहिस्ता ले चल कारवान-ए-शे'र 'हाफ़िज़' को

महमूद आलम

ज़रा आहिस्ता ले चल कारवान-ए-शे'र 'हाफ़िज़' को

महमूद आलम

MORE BYमहमूद आलम

    ज़रा आहिस्ता ले चल कारवान-ए-शे'र 'हाफ़िज़' को

    कि सतह-ए-ज़ेहन-ए-शागिर्दान-ए-नाहमवार है साक़ी

    पढ़ें वो इस तरह कि याद रक्खें बादा-ओ-साग़र

    तसव्वुफ़ की ज़बाँ में ये सभी मय-ख़्वार हैं साक़ी

    दिखा दे इक झलक उन को भी अपने दौर-ए-माज़ी की

    ओह बुझती शमएँ' अब भी मंब'-ए-अनवार हैं साक़ी

    यही कल ज़ालिमों के दर-ए-ख़ैबर को उठाएँगे

    तुम्हें मा'लूम क्या ये हैदर-ए-कर्रार हैं साक़ी

    बहक जाते हैं ’आलिम भी हमेशा दर्स देने में

    मगर ये दर्द भी तो क़ाबिल-ए-इज़हार हैं साक़ी

    स्रोत :
    • पुस्तक : Mata-e-Haque

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