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कविता
अंग सुगन्ध- प्यारी को परसि पौन गौन कियो जा बन में
प्यारी को परसि पौन गौन कियो जा बन में,ता बन के वृक्षन को चन्दन दृढ़ात है।
हिम्मत ख़ान
ग़ज़ल
उठ जाए अभी काम लें हिम्मत से अगर हमइक यूँ ही सा पर्दा है इधर वो हैं उधर हम
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब
ग़ज़ल
हिम्मत-ए-मर्दाना हम हैं रौनक़-ए-मय-ख़ाना हमआए हैं मक़्तल में भी बा-शौकत-ए-शाहाना हम
इक़बाल अशरफ़ सिमनानी
शे'र
पुश्त-ए-पा मारें न क्यों हिम्मत-ए-गर्दूं पर ‘रिंद’शल नहीं फ़ज़्ल-ए-ख़ुदा से अभी बाज़ू अपना