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ना'त-ओ-मनक़बत
जिस रंग में ऐ यार मुझे तू नज़र आयाऐसा कोई गुल भी नहीं ख़ुश-रू नज़र आया
अब्दुल रहीम कुंज्पुरी
सूफ़ी कहावत
ख़लवत अज़ अग़्यार बायद ने ज़े यार
अजनबियों से अलग रहना चाहिए, दोस्तों से नहीं।
वाचिक परंपरा
ना'त-ओ-मनक़बत
क्या ही सूरत है मिरी यार की अल्लाह अल्लाहमेरी सूरत मिरी दिलदार की अल्लाह अल्लाह
मख़्दूम ख़ादिम सफ़ी
ग़ज़ल
जब से हुआ है वो बुत-ए-’अय्यार यार याररोता हूँ तब से बरसर-ए-बाज़ार ज़ार ज़ार
ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़
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विषय
आ’शिक़
आशिक़
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ग़ज़ल
करता हूँ अब के बार मैं तौबा से तौबा यारकिस वास्ते कि टूटी है तौबा हज़ार बार
ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़
ग़ज़ल
ये जो लगा है तीर मुझे ऐ कमान-ए-इश्क़महशर में देखियो यही होगा निशान-ए-इश्क़