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पद
ब्रजभाव के पद - प्रीत निभाना रे काना प्रीत निभाना ए-जी म्हाँने बिसर नहि जाना
प्रीत निभाना रे काना प्रीत निभानाए-जी म्हाँने बिसर नहि जाना
मीराबाई
ग़ज़ल
यारो ये सब बात की इक बात है अस्ल-अल-उसूलयाद में इस की रहो ऐसे कि सब को जाओ भूल
शाह तुराब अली क़लंदर
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ग़ज़ल
ऐ माह-ए-ख़ुश-रू कह दे अब जो बात हैकि पैमाना-ए-तजस्सुसस-ए-मन मुंतज़िर-ए-ब-इल्तिफ़ात है
अहमद अब्दुल रहमान
बैत
इक 'उम्र से है मुझ पे नज़र बर्क़-ए-तपाँ की
इक 'उम्र से है मुझ पे नज़र बर्क़-ए-तपाँ कीअब दिल में तमन्ना ही नहीं जा-ए-अमाँ की
कामिलुल क़ादरी
पद
आँख खोल के देखो तो सब एक ज़ात से घेरी है
आँख खोल के देखो तो सब एक ज़ात से घेरी हैजा से नूर हुआ है दिन को वा से रात अँधेरी है
कवि दिलदार
कलाम
है अ'जब चमन का ये रंग ढंग कि आब का तो है एक रंगये हज़ारों क़िस्म के फूल हैं कहीं सुम्बुल और गुलाब है
ग़ौसी शाह
कलाम
जवानी ख़्वाब की सी बात है दुनिया-ए-फ़ानी मेंमगर ये बात किस को याद रहती है जवानी में
सीमाब अकबराबादी
शे'र
दुनिया के हर इक ग़म से बेहतर है ग़म-ए-जानाँसौ शम्अ' बुझा कर हम इक शम्अ' जला लेंगे
फ़ना निज़ामी कानपुरी
ना'त-ओ-मनक़बत
न कहीं से दूर हैं मंज़िलें न कोई क़रीब की बात हैजिसे चाहें उस को नवाज़ दें ये दर-ए-हबीब की बात है
मुनव्वर बदायूँनी
ना'त-ओ-मनक़बत
कोई सलीक़ा है आरज़ू का न बंदगी मेरी बंदगी हैये सब तुम्हारा करम है आक़ा कि बात अब तक बनी हुई है