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पद
सई में दौलत हशमत की क्यूँ वक़्त को अपने खोता है
सई में दौलत हशमत की क्यूँ वक़्त को अपने खोता हैगर्दिश से अफ़्लाक की क्यूँ मुँह ढाँक के अपना रोता है
कवि दिलदार
ग़ज़ल
कहे मा'बूद ख़ुद अपनी ज़बाँ से जिस को ला-सानीभला फिर अबद से क्या हो सके उस की सना-ख़्वानी
हशमत देहल्वी
फ़ारसी कलाम
ब-क़ौमे फ़ख़्र-ए-फ़क़्र-ओ-ख़ाकसारी कर्द अर्ज़ानीब-जमए’ ताज-ए-फ़ग़फ़ूरी व जाह-ओ-हश्मत-ए-मा रा
शाह नियाज़ अहमद बरेलवी
ना'त-ओ-मनक़बत
न मुझ को माल की ख़्वाहिश न अरमाँ जाह-ओ-हशमत कायही है आरज़ू ईमान पर हो ख़ातिमा या रब
जलाल अकबर
सलोक
फ़रीदा सो दर सच्चा देह जित मन लबु जाह
फ़रीदा सो दर सच्चा देह जित मन लबु जाहराज माल कह खउ अमालन वच लिखाह