बमिरआत-ए-जहाँ ब-नमूद जानाँ रू-ए-ज़ेबा रा
बमिरआत-ए-जहाँ ब-नमूद जानाँ रू-ए-ज़ेबा रा
शाह नियाज़ अहमद बरेलवी
MORE BYशाह नियाज़ अहमद बरेलवी
बमिरआत-ए-जहाँ ब-नमूद जानाँ रू-ए-ज़ेबा रा
ब-रंग-ए-दीगर-ओ-शान-ए-दिगर हर पीर-ओ-बुर्ना रा
दुनिया के आईने में महबूब ने नए अंदाज़ और निराली शान से
हर बूढ़े और जवान को अपना चेहरा दिखाया
अनीस-ए-अहल-ए-ईमाँ हम शुद-ओ-हम यार-ए-बे-दीनाँ
बिना-ए-का'बः रा हम साख़्त हम दैर-ओ-कलीसा रा
वो ईमान वाले का हमदर्द भी हुआ और काफ़िरों का दोस्त भी
उस ने ही का’बा, मंदिर और गिरजा की बुनियाद रखी
ब-पुश्त-ए-पार्सायाँ बार-ए-तक़्वा बर निहाद-ए-ऊस्त
ब-जान-ए-मय-कशाँ अन्दाख़्त मेहर-ए-जाम-ए-सहबा रा
संयमी लोगों की पीठ पर उसने संयम का बोझ लादा
और रिंदों के दिलों में जाम और शराब की मोहब्बत डाली
ब-नूर-ए-आफ़्ताब-ए-रू-ए-ऊ हर ज़र्रः ताबाँ अस्त
न तन्हा माह-ए-कनआ’ने कि ब-नमूद: ज़ुलेख़ा रा
उस के सूरज जैसे चेहरे के नूर से हर ज़र्रा मुनव्वर है
न सिर्फ़ कन’आँ का चाँद जो ज़ुलेख़ा के रू-ब-रू ज़ाहिर हुआ
ब-क़ौमे फ़ख़्र-ए-फ़क़्र-ओ-ख़ाकसारी कर्द अर्ज़ानी
ब-जमए’ ताज-ए-फ़ग़फ़ूरी व जाह-ओ-हश्मत-ए-मा रा
एक क़ौम को फ़क़्र-ए-फ़ख़्री और ख़ाकसारी अ’ता की
(और) एक जमा’अत को बादशाहत का ताज और दारा की जाह-ओ-हश्मत बख़्शी
बहर मुल्क-ए-दिगर राहे व रस्मे दीगरे दारद
बहर तरफ़े मुअ'य्यन साख़्तः अफ़्वाज-ए-अस्मा रा
हर मुल्क में वो अलग-अलग और मुख़्तलिफ़ रंग रखता है
हर तरफ़ उस ने नामों की फ़ौज लगा रखी है
'नियाज़' अज़ फ़ैज़-ए-वुजूद-ए-उस्त पुर-मा’मूर:-ए-आ'लम
कि अज़ तहतुस-सुरा ब-नवाख़त ता फ़ौक़ुस-सुरैया रा
ऐ ‘नियाज़’ उस के उपकार से दुनिया की ’इमारत रौशन है
जिसने पाताल से नक्षत्रों तक को नवाज़ा है
- पुस्तक : दीवान-ए-नियाज़-ए-बे-नियाज़ (पृष्ठ 31)
- संस्करण : First
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