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साखी
सूक्ष्म का अंग - जो आवै तो जाय नहिं जाय तो आवै नाहिं
जो आवै तो जाय नहिं जाय तो आवै नाहिंअकथ कहानी प्रेम की समुझि लेहु मन माहिँ
कबीर
छंद
कूजि रहे खग कुल मधुप, गुञ्जि रहे चहु ओर।
कूजि रहे खग कुल मधुप, गुञ्जि रहे चहु ओर।तेहि बन शिशु गोगन सकल, प्रविशे नन्दकिशोर।।
जय सिंह
छंद
वर्षा गई सरद ऋतु आई। नवल बधु सम सुखद सोहाई।।
वर्षा गई सरद ऋतु आई। नवल बधु सम सुखद सोहाई।।कमल बदन खञ्जन चख छाजे। सुरंग सुमन बर बसन बिराजै।।
जय सिंह
छंद
सुख लहत यों फल चखन मनु पीयत मधुप सो नीति सों।
सुख लहत यों फल चखन मनु पीयत मधुप सो नीति सों।मनु मगन ब्रह्मानन्द रस जोगीस जो मुनिगन प्रीति सों।।
जय सिंह
छंद
जल बिन जलद सेत छवि छाजत। सब धन दै जिमि दाता राजत।।
जल बिन जलद सेत छवि छाजत। सब धन दै जिमि दाता राजत।।निर्मल भयो गगन घन फूटे। जिमि हिय विषय बासना छूटे।।
जय सिंह
शबद
जय हो तुम्हारी घीसाराम
हाथ जोड़ मैं खड़ा हुआ हूँ शरण आप की पड़ा हुआ हूँसभी तरह से झड़ा हुआ हूँ नहीं बनता है कुछ काम
अचलदास
होरी
फागुन समय सोहावन हो नर खेलहु अवसर जाय
फागुन समय सोहावन हो नर खेलहु अवसर जायये तन बालू मंदिर हो नर धोखे माया लपटाय
गुलाल साहब
सलोक
लख करोड़ी खटि के बंदा जाई नि नंगु
लख करोड़ी खटि के बंदा जाई नि नंगुफ़रीदा जिन्दुड़ी न छडदा अजराईलु मलंग
बाबा फ़रीद
पद
हमसों रहा न जाय मुरली कै धुन सुन के
हमसों रहा न जाय मुरली कै धुन सुन केबिना बसंत फूल इक फूलै भँवर सदा बोलाय
कबीर
साखी
बिरह का अंग - पीर पुरानी बिरह की पिंजर पीर न जाय
पीर पुरानी बिरह की पिंजर पीर न जायएक पीर है प्रीति की रही कलेजे छाय