अगर बंदा बनना चाहते हो, तो ज़िक्र करो। अगर ख़ुदा जैसा बनना चाहते हो, तो फ़िक्र करो।
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काम को पूरा करने में कभी लापरवाही नहीं करनी चाहिए। जितना हो सके उतना काम करते रहना चाहिए, क्योंकि काम करने से ही काम निकलता है। और यह कभी नहीं सोचना चाहिए कि काम करने पर भी कोई नतीजा क्यों नहीं मिला।
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जब तक इंसान अपने मैं को मिटा नहीं देता, वह कभी भी ख़ुदा तक नहीं पहुँच सकता।
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जितना लोगों से मेल-जोल कम करोगे और पीर का तसव्वुर रखोगे, उतनी ही घबराहट कम होगी और बदले में सब बेहतर होगा।
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शरीअत की मिसाल दूध जैसी है और तरीक़त की मिसाल दही जैसी, मआरिफ़त की मिसाल मक्खन जैसी और हक़ीक़त की मिसाल शुद्ध घी जैसी है।
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