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शे'र
जाते जाते अर्सा-ए-गाह-ए-हश्र तक जो हाल होउठते उठते क़ब्र में सौ फ़ित्ना-ए-महशर उठे
रियाज़ ख़ैराबादी
ना'त-ओ-मनक़बत
न ये ताक़त से जाता है न हो कर ज़र से जाता हैनबी के दीं का रस्ता कलमा-ए-अतहर से जाता है
महमूद अहमद रब्बानी
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ना'त-ओ-मनक़बत
वारिस पे हुए जाते हैं क़ुर्बान हज़ारोंऔर ज़िंदा हुए जाते हैं बे-जान हज़ारों
हैरत शाह वारसी
ग़ज़ल
कूचा-ए-ज़ुल्फ़-ए-सनम में अहल-ए-दिल जाते हैं क्यूँऔर जाते हैं तो दिल सी चीज़ छोड़ आते हैं क्यूँ
आसी गाज़ीपुरी
बैत
जाता है मुझ से मेरा ज़माना शबाब का
जाता है मुझ से मेरा ज़माना शबाब काऐ पीर-ए-मुग़ाँ ला मेरा शीशा शराब का
मोहम्मद समी
कलाम
जुनूँ वज्ह-ए-शिकस्त-ए-रंग-ए-महफ़िल होता जाता हैज़माना अपने मुस्तक़बिल में दाख़िल होता जाता है
सीमाब अकबराबादी
ना'त-ओ-मनक़बत
वहाँ अल्लाह से मिलने इक इंसाँ घर से जाता हैफ़रिश्ता भी जहाँ कोशिश करे तो पर से जाता है
इज़हार जबलपुरी
ग़ज़ल
नज़र भर कर वो हुस्न-ए-पर्दः-दर देखा नहीं जाताबहुत चाहा कि मैं देखूँ मगर देखा नहीं जाता
मुज़्तर ख़ैराबादी
ना'त-ओ-मनक़बत
मदीने जाती हुई हवाएँ मुझे दु'आओं में याद रक्खेंअहद से उठती हुई घटाएँ मुझे दु'आओं में याद रक्खें
सय्यद सलीम गिलानी
ग़ज़ल
इधर भी देख ले किस शौक़-ए-अफ़्ज़ाई में जीते हैंतिरे महजूर-ए-मश्क़-ए-आबला-पाई में जीते हैं
डॉ. मंसूर फ़रिदी
शे'र
सीमाब अकबराबादी
ग़ज़ल
बढ़ा है ज़ौक़-ए-सज्दा इक कशिश सी पाई जाती हैजबीं खींच कर तुम्हारे आस्ताँ तक आई जाती है
फ़ज़्ल नक़वी
शे'र
सामने मेरे ही वो जाते हैं बज़्म-ए-ग़ैर मेंअल-मदद ऐ ज़ब्त मुझ को कब तक उस का ग़म रहे