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न ये ताक़त से जाता है न हो कर ज़र से जाता है

महमूद अहमद रब्बानी

न ये ताक़त से जाता है न हो कर ज़र से जाता है

महमूद अहमद रब्बानी

MORE BYमहमूद अहमद रब्बानी

    ये ताक़त से जाता है हो कर ज़र से जाता है

    नबी के दीं का रस्ता कलमा-ए-अतहर से जाता है

    शह-ए-कौनैन शाह-ए-अंबिया के दर से जाता है

    ख़ुदा के घर का रस्ता मुस्तफ़ा के घर से जाता है

    नबी तन्हा चले आगे रुके जिब्रील सिदरह पर

    कि मिलने नूर-ए-अहमद ख़ालिक़-ए-अकबर से जाता है

    उसी का रुख़ चमकता है हमेशा नूर-ए-अहमद से

    जो 'इश्क़-ए-मुस्तफ़ा ले कर दर-ए-अतहर से जाता है

    ख़ुदा बख़्शेगा हम सब को मोहम्मद बख्शवाएँगे

    ये रस्ता बख़्शिशों को शाफ़े'-ए'-महशर से जाता है

    नबी की शान में गुस्ताख़ियाँ करता है जो नादाँ

    क़लम सर उस का होता है वो अपने सर से जाता है

    जुड़ा 'अहमद' का भी रिश्ता मोहम्मद के घराने से

    नबी तक मेरा भी शजरा दर-ए-नश्तर से जाता है

    स्रोत :
    • पुस्तक : Sukhanwaran-e-Izzat (पृष्ठ 331)

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