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कलाम
शाह अकबर दानापूरी
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ग़ज़ल
तेरे फ़िराक़ में ऐ सनम हर रोज़ है हालम बतरतुझ कूँ है लाज़िम दम-ब-दम बख़्शिश मेरी अहवाल पर
क़ादिर बख़्श बेदिल
ना'त-ओ-मनक़बत
सर से पा तक लग रहे हैं मज़हर-ए-अनवार सेहू-ब-हू हैं मिरे वारिस सय्यद-ए-अबरार से
रशीद वारसी
शे'र
सुरूर-ओ-कैफ़ का नग़्मा ग़म-ओ-अंदोह का नौहातिलिस्म-ए-ज़ीस्त की सरगम कभी कुछ है कभी कुछ है
अब्दुल हादी काविश
ग़ज़ल
जो कैफ़ है फ़िराक़ में वो फिर कहाँ विसाल मेंये बे-ख़ुदी जो है मुझे किसी के हूँ ख़याल में
नुशूर वाहिदी
ग़ज़ल
कैफ़-ओ-कम को देख उसे बे-कैफ़-ओ-कम कहने लगेजब हुदूस अपना खुला राज़-ए-क़िदम कहने लगे
ख़्वाजा मीर दर्द
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
गुल दर बर व मय दर कफ़ व मा'शूक़ः ब-कामस्तसुल्तान-ए-जहानम ब-चुनींं रोज़-ए-ग़ुलामस्त