गुल दर बर व मय दर कफ़ व मा'शूक़ः ब-कामस्त
रोचक तथ्य
अनुवाद: शंकर महेशवरी
गुल दर बर व मय दर कफ़ व मा'शूक़ः ब-कामस्त
सुल्तान-ए-जहानम ब-चुनींं रोज़-ए-ग़ुलामस्त
जब फूलों का हार गले में, हाथों में मधु का प्याला
मन वांछित प्रेयसी पास हो तो भूपति भी मेरा दास
गो शम्अ' मयारीद दरीं बज़्म कि इमशब
दर मजलिस-ए-मा माह-ए-रुख़-ए-दोस्त तमामस्त
आज घोषणा करो कि कोई दीप न लाए महफ़िल में
प्रिय के पूर्ण चंद्र मुख की छवि आज यहाँ पर छाई है
दर मज़्हब-ए-मा बादः हलालस्त व लेकिन
बे-रू-ए-तू ऐ सर्व-ए-गुल-अन्दाम हरामस्त
मदिरा पीना विधि सम्मत है मेरे मज़हब में लेकिन
तेरे बिना अधर्म वही बन जाता है ऐ गुल-बदनी
गोशम हमः बर क़ौल-ए-नय-ओ-नग़्मः-ए-चंग अस्त
चश्मम हमः बर ला'ल-ए-लब-ओ-गर्दिश-ए-जामस्त
मुरली कि धून और मृदंगम की ध्वनी को सुनते हैं कान
मँडराती प्याली, अधरों की लाली पर अटकी है आँख
दर मजलिस-ए-मा इत्र मियामीज़ कि जाँ रा
हर-लहज़: ज़े-गेसू-ए-तू ख़ुश्बू-ए-मशामस्त
आज हमारी इस मज्लिस में इस्त्र छिड़कने का क्या काम
तेरे केशों की सुगंध से गमक रहे हैं मेरे प्राण
अज़ चाशनी-ए-क़ंद ब-गो हेच वज़ शक्कर
ज़ाँ रौ कि मरा बा-लब-ए-शीरीन-ए-तू कामस्त
चीनी और चासनी की बातों में क्या है धरा कहो
मेरा तो उद्देश्य, तुम्हारी अधर माधुरी को पाना
ता-गंज-ए-ग़मत दर दिल-ए-वीरानः मुक़ीमस्त
पैवस्त: मरा कुंज-ए-ख़राबात मक़ामस्त
इस एकांत हृदय में जब से हुआ दुखनिधियों का वास
तब से मधुशालाका प्रांतर बना हुआ मेरा आवास
अज़ नंग चे गोई कि मरा नाम ज़े-नंगस्त
वज़ नाम चे पुर्सी कि मरा नंग ज़े-नामस्त
अपमानों की क्या कहते हो, यही ख्याति के कारण हैं
और ख्याति का भी क्या कहना, उससे मैं अपमानित हूँ
मय-ख़्वारः-ओ-सरगश्तः-ओ-रिंदीम-ओ-नज़र-बाज़
वांकस कि चू मा नीस्त दरीं शहर-ए-कुदामस्त
मैं तो मध्यप हूँ, सनकी हूँ, आँख लड़ाने वाला हूँ
लेकिन ऐसा कौन शहर में जो मुझ जैसा नहीं यहाँ
बा-मुहतसिम ऐ'ब मगोईद कि ऊ नीज़
पैवस्त: चू मा दर तलब-ए-ऐश-ए-मुदामस्त
धर्मदेश्क के सम्मुख तुम करो न हम पर दोषारोप
वे भी तो हम जैसे, देखो खोज रहे हैं परमानंद
'हाफ़िज़' म-नशीं बे-मय-ओ-मा'शूक़ः-ज़माने
कि-अय्याम-ए-गुल-ओ-यासमन-ओ-ई'द-ए-सय्यामस्त
समय गुलाब चमेली का है, आई है रोज़ों की ई’द
ऐसे में तू मत रह ‘हाफ़िज़’ बिना प्रिया के, आसव के
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