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दोहा
जोगिनि ह्वै सब जग फिरी कमरि बाँधि मृगछाल
जोगिनि ह्वै सब जग फिरी कमरि बाँधि मृगछालबिछुरे साजन ना मिले कारन कौन 'जमाल'
जमाल
कविता
पिय चलती बेरियॉ, कछु न कहे समझाय ।
पिय चलती बेरियॉ, कछु न कहे समझाय ।तन दुख मन दुख नैन दुख हिय में दुख की खान ।।
रानी रघुवंश कुमारी
कविता
पिय के पद कंचन-राती ।
पिय के पद कंचन-राती ।विष्णु विरंचि संभु सम पति मे छिन-छिन प्रेम लगाती ।
रानी रघुवंश कुमारी
कवित्त
कहत पुकार कोइलिया हे ऋतु राज ।
कहत पुकार कोइलिया हे ऋतु राज ।न्याय-दृष्टि से देखहु विपिन समाज ।
रानी रघुवंश कुमारी
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कविता
खस के वितान पै गुलाब जल फुइयाँ फुइयाँ,
खस के वितान पै गुलाब जल फुइयाँ फुइयाँ,बीजुली के पंखे निसि बासर फिरै करैं ।
रानी रघुवंश कुमारी
शे'र
कोई मर कर तो देखे इम्तिहाँ-गाह-ए-मोहब्बत मेंकि ज़ेर-ए-ख़ंजर-ए-क़ातिल हयात-ए-जावेदाँ तक है
बेदम शाह वारसी
शे'र
इम्तिहाँ-गाह-ए-वफ़ा में तू भी चल मैं भी चलूँआज ऐ शमशीर-ए-क़ातिल मैं नहीं या तू नहीं
मुज़्तर ख़ैराबादी
शे'र
हश्र के दिन इम्तिहाँ पेश-ए-ख़ुदा दोनों का हैलुत्फ़ है उनकी जफ़ा मेरी वफ़ा से कम रहे
मिरर्ज़ा फ़िदा अली शाह मनन
राग आधारित पद
राग धनाश्री - व्रज में आज एक कुमारि
ब्रज में आज एक कुमारितपनरिपु चल जासु पति हिय अन्त हीन विचार
सूरदास
ग़ज़ल
मिरी फ़ितरत वफ़ा है दे रहा हूँ इम्तिहाँ फिर भीवो फ़ितरत-आश्ना है और मुझ से बद-गुमाँ फिर भी
सीमाब अकबराबादी
फ़ारसी कलाम
ऐ सर्व-ए-नाज़नीने ऐ तुर्क-ए-बे-नियाज़ेशोरे ज़दी ब-'आलम अज़ क़ामत-ए-दराज़े