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सूफ़ी कहावत
चूं क़ज़ा आयद तबीब अब्लाह शवद
जब मौत आती है तो डॉक्टर बेबस हो जाता है। जब क़ज़ा आती है तो हकीम भी बेवक़ूफ़ हो जाता है।
वाचिक परंपरा
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
मन अज़ कुजा पंद अज़ कुजा बाद: ब-गर्दां साक़ियाऐ जाम-ए-जाँ अफ़ज़ा-ए-रा बर ज़ेर-ए-जान-ए-साक़िया
रूमी
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
म-बाश ग़र्र: ब-इल्म-ओ-अ'मल फ़क़ीह-ए-ज़माँकि हेच-कस ज़े-क़ज़ा-ए-ख़ुदा-ए-जाँ न-बरद
हाफ़िज़
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पद
विरह के पद - प्रीत नहीं कीजे एजी हो प्रीत नहीं कीजे बिछरत नैण झरीजे
प्रीत नहीं कीजे, एजी हो प्रीत नहीं कीजे बिछरत नैण झरीजेपतिंग जो प्रीत करी दीपक सें सन्मुख देह जरीजे
मीराबाई
फ़ारसी कलाम
न श्नाख़्ती ब-कुजा रवी ज़े-कुजा ब-ईं सफ़र आमदीतू ख़राब-ए-नश्श:-ए-कीस्ती की ज़े-ख़्वेश बे-ख़बर आमदी
ख़्वाजा मीर दर्द
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
ब-शगुफ़्त गुल दर बोस्ताँ आँ गुंचः-ए-ख़ंदाँ कुजाशुद वक़्त-ए-ऐश-ए-दोस्ताँ आँ लाल: बुस्ताँ कुजा
अमीर ख़ुसरौ
शे'र
कब दिमाग़ इतना कि कीजे जा के गुल-गश्त-ए-चमनऔर ही गुलज़ार अपने दिल के है गुलशन के बीच
मीर मोहम्मद बेदार
ग़ज़ल
पाता नहीं बग़ल में दिल-ए-दिलबर-ए-मा कुजा ब-रफ़्तकह दो कोई तबीब से जान-ए-अ'ज़ीज़-ए-मा ब-रफ़्त
आग़ा मुहम्मद दाऊद
ग़ज़ल
कहा अग़्यार का हक़ में मिरे मंज़ूर मत कीजोमुझे नज़दीक से अपने कभू तू दूर मत कीजो