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क़ाज़ी महमूद दरियाई

वीरपुर, भारत

क़ाज़ी महमूद दरियाई

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दोहा 5

कलमा शहादत तिल बिसारो जिसथी छूटो निदान।

महमूद मुख थी तिल बिसरे अपने अल्लाह का नाम।।

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कलमा शहादत तिल बिसारो जिसथी छूटो निदान।

महमूद मुख थी तिल बिसरे अपने अल्लाह का नाम।।

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खाओ हलाल बोलो मुख सांचा राखो दुरुस्त ईमान।

छोडो जंजाल झूठी सब माया जो मन होए ज्ञान।।

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खाओ हलाल बोलो मुख सांचा राखो दुरुस्त ईमान।

छोडो जंजाल झूठी सब माया जो मन होए ज्ञान।।

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सवार उठ लीजे अपने अल्लाह का नांव।

पाँचों वक्त नमाज़ गुज़ारों दायम पढ़ो कुरान।।

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गूजरी सूफ़ी काव्य 8

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