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जहाँ हैं महव-ए-नग़्मा बुलबुलें गुल जिस में ख़ंदाँ हैंउसी गुलशन में कल ज़ाग़-ओ-ज़ग़न का आशियाँ होगा
अर्श गयावी
फ़ारसी कलाम
रूए निकोश मतला-ए’-सुब्ह-ए-सआ'दतस्तसीमा-ए-उस्त शम-ए’-शबिस्तान-ए-औलिया
शाह नियाज़ अहमद बरेलवी
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फ़ारसी कलाम
ब-ख़ुदा कि जुर्आ’ए देह तू ब-‘हाफ़िज़’-ए-सहर-ख़ेज़कि दूआ'-ए-सुब्ह-गाही असरे कुनद शुमा रा
हाफ़िज़
फ़ारसी कलाम
न-दानम बंद:-ए-रू-ए-तू बाशम या सग-ए-कूयतब-हर नौए’ कि मी-ख़्वाही ब-गो ता आँ-चुनाँ बाशम
नूरुद्दीन हिलाली
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
ब-शगुफ़्त गुल दर बोस्ताँ आँ गुंचः-ए-ख़ंदाँ कुजाशुद वक़्त-ए-ऐश-ए-दोस्ताँ आँ लाल: बुस्ताँ कुजा
अमीर ख़ुसरौ
कलाम
दिखाई सूरत-ए-गुल पर बहार-ए-शोख़ी-ए-पिन्हाँछुपाया मा'नी-ए-गुल में कुछ हुस्न-ए-नुमायाँ को
असग़र गोंडवी
ना'त-ओ-मनक़बत
मुक़ाबिल-ए-मूसा ’इमरान मेरे अहमद के क्या ठहरेवो थे 'आशिक़ ख़ुदा के और ये मा'शूक़-ए-ख़ुदा ठहरे
अज्ञात
होरी
होरी होय रही अहमद जियो के द्वार
होरी होय रही अहमद जियो के द्वारनबी अली को रंग बनो है हसन हुसैन खिलार
शाह नियाज़ अहमद बरेलवी
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
ख़ंदः-ए-जाम-ए-मय-ओ-ज़ुल्फ़-ए-गिरह-गीर-ए-निगारऐ बसा तौब: कि चूँ तौबः-ए-'हाफ़िज़' ब-शिकस्त