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ना'त-ओ-मनक़बत
मँगते ख़ाली हाथ न लौटे कितनी मिली ख़ैरात न पूछोउन का करम फिर उन का करम है उन के करम की बात न पूछो
ख़ालिद मह्मूद नक़्श्बंदी
ना'त-ओ-मनक़बत
कोई सलीक़ा है आरज़ू का न बंदगी मेरी बंदगी हैये सब तुम्हारा करम है आक़ा कि बात अब तक बनी हुई है
ख़ालिद मह्मूद नक़्श्बंदी
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ना'त-ओ-मनक़बत
अब मेरी निगाहों में तो जचता नहीं कोईजैसे मिरे सरकार है ऐसा नहीं कोई
ख़ालिद मह्मूद नक़्श्बंदी
ना'त-ओ-मनक़बत
मँगते हैं करम उन का सदा माँग रहे हैंदिन-रात मदीने की दु'आ माँग रहे हैं
ख़ालिद मह्मूद नक़्श्बंदी
ना'त-ओ-मनक़बत
ग़म सभी राहत-ओ-तस्कीन में ढल जाते हैंजब करम होता है हालात बदल जाते हैं
ख़ालिद मह्मूद नक़्श्बंदी
ना'त-ओ-मनक़बत
चलो दयार-ए-नबी की जानिब दरूद लब पर सजा-सजा करबहारें लूटेंगे हम करम की दिलों में दामन बना-बना कर
ख़ालिद मह्मूद नक़्श्बंदी
कलाम
यार ख़ुद जल्वा-नुमा था मुझे मा'लूम न थाग़ुंचा-ओ-गुल में बसा था मुझे मा'लूम न था
शाह फ़िदा हुसैन फ़य्याज़ी
ना'त-ओ-मनक़बत
ख़ालिद मह्मूद नक़्श्बंदी
सूफ़ी लेख
हज़रत ग़ौस ग्वालियरी और योग पर उनकी किताब "बह्र-उल-हयात"
हज़रत ग़ौस ग्वालियरी शत्तारिया सिलसिले के महान सूफ़ी संत थे. शत्तारी सिलसिला आप के समय बड़ा
सुमन मिश्र
शे'र
चश्म-ए-हक़ीक़त-ए-आश्ना देखे जो हुस्न की किताबदफ़्तर-ए-सद-हदीस-ए-राज़ हर वरक़-ए-मजाज़ हो
बेदम शाह वारसी
ना'त-ओ-मनक़बत
कोई सलीक़ा है आरज़ू का न बंदगी मेरी बंदगी हैये सब तुम्हारा करम है आक़ा कि बात अब तक बनी हुई है
ख़ालिद मह्मूद नक़्श्बंदी
गूजरी सूफ़ी काव्य
जिकरी ब-शौक़ दिली न जिगरी
ते पीड़ न जाने मेरी रेहूँ मीत कहूँगी बैरी रे