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फ़ारसी सूफ़ी काव्य
ऐ जान-ए-मा ऐ जान-ए-मा ऐ कुफ़्र-ओ-ईमान-ए-माख़्वाहम कि ईं ख़र-मोहरः रा गौहर कुनी दर कान-ए-मा
रूमी
रूबाई
है कुफ़्र अगरचे हक़ को मैं ग़ैर कहूँपर का'बः को किस तरह से कि दैर कहूँ
ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़
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शे'र
मुज़्तर ख़ैराबादी
फ़ारसी कलाम
आ'शिक़-ए-यारम मरा बा-कुफ़्र-ओ-बा-ईमाँ चे कारतिश्न:-ए-दर्दम मरा बा-वस्ल-ओ-बा-हिज्राँ चे कार
हाफ़िज़
कलाम
क्या कहें मिल्लत-ओ-दीं कुफ़्र है ईमाँ अपनापेश-ए-बुत-ए-सज्दा है और दैर है ऐवाँ अपना
तसद्दुक़ अ’ली असद
ना'त-ओ-मनक़बत
कुछ कुफ़्र ने फ़ित्ने फैलाए कुछ ज़ुल्म ने शो'ले भड़काएसीनों में 'अदावत जाग उठी इंसान से इंसाँ टकराए
माहिरुल क़ादरी
शे'र
रुख़ पे हर सूरत से रखना गुल-रुख़ाँ ख़त का है कुफ़्रदेखो क़ुरआँ पर न रखियो बोस्ताँ बहर-ए-ख़ुदा
शाह नसीर
शे'र
रुख़ पे हर सूरत से रखना गुल-रुख़ाँ ख़त का है कुफ़्रदेखो क़ुरआँ पर न रखियो बोस्ताँ बहर-ए-ख़ुदा
शाह नसीर
ग़ज़ल
राज़-ए-सर-बस्ता मोहब्बत के ज़बाँ तक पहुँचेबात बढ़ कर ये ख़ुदा जाने कहाँ तक पहुँचे