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सूफ़ी लेख
बिहार में क़व्वालों का इतिहास
क़व्वाली शब्द अरबी भाषा के शब्द ‘क़ौल’ से लिया गया है। क़ौल पढ़ने वाले व्यक्ति को
रय्यान अबुलउलाई
दोहा
दूध मध्य ज्यों घीव है मेहंदी माहीं रंग
दूध मध्य ज्यों घीव है मेहंदी माहीं रंगजतन बिना निकसै नहीं 'चरनदास' सो ढंग
चरनदास जी
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दोहा
विनय मलिका - किस बिधि रीझत हौ प्रभू का कहि टेरूँ नाथ
किस बिधि रीझत हौ प्रभू का कहि टेरूँ नाथलहर मेहर जब हीं करो तब हीं होउँ सनाथ
दया बाई
पद
नाथ अनाथ की सब जानै
नाथ अनाथ की सब जानैठाढ़ी द्वार पुकार करति हौ स्रवन सुनत नहिं कहा रिसानै
जुगल प्रिया
कविता
नाथ अनाथन की सब जानै
नाथ अनाथन की सब जानैठाढ़ी द्वार पुकार करति हौं श्रवन सुनत नहिं कहा रिसानै
जुगल प्रिया
पद
रमते नाथ फ़क़ीर कोई दिन याद करोगे
रमते नाथ फ़क़ीर कोई दिन याद करोगेकोई दिन बैठे पालखि घोड़ा कोई दिन गिणे अबदागीर
देवनाथ महाराज
दोहा
विनय मलिका - हौ अनाथ के नाथ तुम नेक निहारो मोहि
हौ अनाथ के नाथ तुम नेक निहारो मोहि'दयादास' तन हे प्रभू लहर मेहर की होहि
दया बाई
कलाम
मैं ख़याल हूँ किसी और का मुझे सोचता कोई और हैसर-ए-आईना मिरा 'अक्स है पस-ए-आईना कोई और है
सलीम कौसर
दोहा
विनय मलिका - कब को टेरत दीन भो सुनौ न नाथ पुकार
कब को टेरत दीन भो सुनौ न नाथ पुकारकी सरवन ऊँचौ सुनो की बिर्द दियो बिसार