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दोहा
दूध मध्य ज्यों घीव है मेहंदी माहीं रंग
दूध मध्य ज्यों घीव है मेहंदी माहीं रंगजतन बिना निकसै नहीं 'चरनदास' सो ढंग
चरनदास जी
राग आधारित पद
राग भैरव चौताल - एरी आज बाँसुरी बजाई बन मध्य कौन ढंग कौन रंग फूंकि-फुंकि
एरी आज बाँसुरी बजाई बन मध्य कौन ढंग कौन रंग फूंकि-फुंकिसुनत स्रवन सुधि रही नहीं तन की भई हों बावरी
तानसेन
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साखी
चेतावनी का अंग - निर्गुन निर्मल नाम है अविगत नाम अबंच
निर्गुन निर्मल नाम है अविगत नाम अबंचनाम रते सो धनपती और सकल परपंच
गरीब दास
पद
प्रथम एक जो आपे आप निराकार निर्गुन निर्जाप
प्रथम एक जो आपे आप निराकार निर्गुन निर्जापनहिं तव आदि अंत मध-तारा नहि तव अंध धुंध उजियारा
कबीर
अरिल्ल
निर्गुन कहिये ब्रह्म बेद परमातम गावा
निर्गुन कहिये ब्रह्म बेद परमातम गावापाँच तत्त गुन बँधा जीव आत्मा कहावा
तुलसी साहिब हाथरस वाले
साखी
पतिब्रता का अंग - मैं अबला पिउ पिउ करौं निरगुन मेरा पीव
मैं अबला पिउ पिउ करौं निरगुन मेरा पीवसुन्न सनेही गुरू बिनु और न देखौं जीव
कबीर
दोहा
जाप जोग तप तीर्थ से निर्गुण हुआ न कोई
जाप जोग तप तीर्थ से निर्गुण हुआ न कोई'औघट' गुरु दया करें तो पल में निर्गुण होई
औघट शाह वारसी
साखी
अथ गुरू - शिष्य निर्गुण का अंग
'रज्जब' राम न रहम कर अक्षर लिखे न भालताथें सद्गुरू ना मिलया गुरू शिष रहे कंगाल
रज्जब
ग़ज़ल
चमन की सर-ज़मीं देखी न रंग-ए-गुलिस्ताँ मैं नेक़फ़स से तब्दीलियाँ लेकर बनाया आशियाँ मैं ने
सूफ़ी तबस्सुम
शे'र
नहीं बंदा हक़ीक़त में समझ असरार मा'नी काख़ुदी का वहम बरहम ज़न पिछे बे-ख़ुद ख़ुदाई कर