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ना'त-ओ-मनक़बत
जुज़ मह्व-ए-’इश्क़-ए-हक़ के सब है 'नियाज़' बातिलहो दूर क़ील-ओ-क़ाली या-पीर-ए-ग़ौस-ए-आ’ज़म
नियाज़ वज़िरबादी
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कलाम
अपना महरम जो बनाया तुझे मैं जानता हूँमुझ से मुँह फिर क्यूँ छुपाया तुझे मैं जानता हूँ
शाह ख़ामोश साबरी
कलाम
ख़ाम की जाणन सार फ़क़र दी महरम नहीं दिल दे हूआब मिट्टी थीं पैदा होए खामी भांडे गिल्ल दे हू
सुल्तान बाहू
कलाम
शाह तक़ी राज़ बरेलवी
फ़ारसी कलाम
ऐ मुनव्वर-ए-हर-दो-आ'लम ज़े-आफ़ताब-ए-रू-ए-तूवय मोअ'त्तर-ए-मुल्क-ए-जाँ अज़ ज़ुल्फ़-ए-अंबर बू-ए-तू
असीरी लाहीजी
सूफ़ी उद्धरण
सबसे प्यारा इन्सान वो होता है जिसको पहली ही बार देखने से दिल ये कहे। ''मैंने उसे पहली बार से पहले भी देखा हुआ है''।
वासिफ़ अली वासिफ़
ना'त-ओ-मनक़बत
नियाज़ वज़िरबादी
कलाम
पर्दा-ए-शौक़ है यही सूरत-ए-राज़ है यहीतुम हो नज़र के सामने मेरी नमाज़ है यही
शाह तक़ी राज़ बरेलवी
कलाम
ऐ दिल-ए-पुर-सुरूर-ए-मन नाज़ न बन नियाज़ बनसाक़ी-ए-मस्त-ए-नाज़ की आँखों में सरफ़राज़ बन