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सूफ़ी उद्धरण
शाइरी अपने आप में कोई मक़सद नहीं है, बल्कि मक़सद हासिल करने का ज़रिया है।
शाइरी अपने आप में कोई मक़सद नहीं है, बल्कि मक़सद हासिल करने का ज़रिया है।
शाह अब्दुल लतीफ़ भिटाई
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कलाम
तुम ही तो वज्ह-ए-ज़िंदगी तुम ही तो मक़्सद-ए-हयातजान-ए-जहान-ए-आरज़ू रूह-ए-रवान-ए-काएनात
कामिल शत्तारी
सूफ़ी लेख
क़व्वाली का ‘अह्द-ए-ईजाद और मक़्सद-ए-ईजाद
क़व्वाली की ईजाद अमीर ख़ुसरो के ‘अह्द-ए-हयात 1253 ता 1325 के ठीक दरमियान का ‘अह्द है,
अकमल हैदराबादी
सूफ़ी लेख
समाअ और क़व्वाली का मक़सद-ए-ईजाद अलग अलग
अह्ल-ए-समा’अ के इर्शाद के मुताबिक़ शरी’अत तरीक़त से जुदा है और न तरीक़त शरी’अत से जुदा।
अकमल हैदराबादी
सूफ़ी उद्धरण
इंसान की ज़िंदगी का असली मक़सद "महबूब-ए-हक़ीक़ी" (ख़ुदा) तक पहुँचना है और अपनी हस्ती को उस में बिल्कुल मिला देना है, ये काम बड़ा कठिन है।
शाह अब्दुल लतीफ़ भिटाई
फ़ारसी कलाम
सालहा अज़ पय-ए-मक़्सूद ब-जाँ गर्दीदेमदोस्त दर ख़ान: व मा दर गिर्द-ए-जहाँ गर्दीदेम