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जान-ए-मन आप एक काम करेंअपने इल्ज़ाम मेरे नाम करें
आप की जब भी चश्म-ए-अ'ता होगईजान ख़ुश्बू की मानिंद उड़ जाएँगे
देखने वाला इक नहीं मिलताआँख वाले कसीर होते हैं
बस इक दाग़-ए-सज्दा मिरी काइनातजबीनें तिरी आस्ताने तिरे
ये जो हल्का हल्का सुरूर हैये तेरी नज़र का क़ुसूर है
ज़माना दरमियाँ से हट गया हैजमाल-ए-आशना है और मैं हूँ
'अदम' से भी थोड़ा सा हुस्न-ए-सुलूकसितारा जबीं हो गुल-अंदाम हो
तिरी आँखों की फ़रमाइश पे इंसाँफ़रेब-ए-ज़िंदगी भी खा गए हैं
शाम आई और आई कुछ इस एहतिमाम सेवो गेसू-ए-दराज़ बिखरता चला गया
मिरे हाथ में ख़त्त-ए-दिल की जगहमोहब्बत ने रस्म-ए-वफ़ा डाल दी
ज़रा मैं भी ता’ज़ीम-ए-मौसम करूँगाज़रा आप भी शौक़ फ़रमाइएगा
जो पूछा कि किस तर्ह होती है बारिशजबीं से पसीने की बूँदें गिरा दीं
ग़म-ए-ज़िंदगी को 'अदम' साथ लेकरकहाँ जा रहे हो सवेरे-सवेरे
नशात-ए-दिल है या तस्कीन-ए-जाँ हैमिरी हर शय बरा-ए-दोस्ताँ है
साज़-ए-हस्ती बजा रहा हूँ मैंजश्न-ए-मस्ती मना रहा हूँ मैं
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