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ग़ज़ल
ज़ोर दिखलाता है क्या-क्या ज़ो'फ़ जिस्म-ए-ज़ार कारंग उड़ने को तरसता है मिरी रुख़्सार का
मुंशी अमीरुल्लाह तस्लीम
ग़ज़ल
रो रो के ज़ार-ज़ार ये कहता है जान-ए-अब्रहो चश्म-ए-अश्क-बार पे ये साएबान-ए-अब्र
ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़
सूफ़ी कहावत
ज़र महक मर्दुम-ए-बद गोहर अस्त।
जिनकी बुरी प्रवृत्ति होती है उनकी परीक्षा सोने (या पैसे) से होती है