Font by Mehr Nastaliq Web

न रोता ज़ार ज़ार इतना न करता शोर-ओ-शर इतना

सफ़ी औरंगाबादी

न रोता ज़ार ज़ार इतना न करता शोर-ओ-शर इतना

सफ़ी औरंगाबादी

MORE BYसफ़ी औरंगाबादी

    रोता ज़ार ज़ार इतना करता शोर-ओ-शर इतना

    इलाही क्या करूँ दर्द-ए-जिगर इतना जिगर इतना

    हमारे वास्ते ता'ने सुना करते हो ग़ैरों के

    तुम्हारा भी दिल इतना हौसला इतना जिगर इतना

    तड़प जाने लगा दिल अब तो हर इक शय की ख़ूबी पर

    दे दुश्मन के दुश्मन को ख़ुदा ज़ौक़-ए-नज़र इतना

    तिरे आ'शिक़ की सूरत अब तो पहचानी नहीं जाती

    सताते हैं भला इस तरह ऐसा इस क़दर इतना

    ख़ुदा के वास्ते इंसाफ़ कर रूठने वाले

    तग़ाफ़ुल शेवा-ए-मा'शूक़ है ज़ालिम मगर इतना

    हमें मा'लूम है ये भी तुझे मा'लूम है सब कुछ

    हमें उस की ख़बर भी है नहीं तू बे-ख़बर इतना

    नहीं मिलते तो कह दो और मिलना है तो मिल जाओ

    कोई कब तक फिरे कूचा ब-कूचा दर बदर इतना

    'सफ़ी' क्यूँ क़द्र का तालिब हुआ है इस ज़माने में

    अरे कम-बख़्त तेरे पास कब है माल-ओ-ज़र इतना

    स्रोत :
    • पुस्तक : गुल्ज़ार-ए-सफ़ी (पृष्ठ 18)
    • रचनाकार : सफ़ी, औरंगाबादी
    • प्रकाशन : गोल्डेन प्रेस, हैदराबाद (1987)

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY
    बोलिए