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ग़ज़ल
अज़ल के दिन से बज रहा है साज़-ए-नग़्मा-हा-ए-इ'श्क़तू गोश-ए-दिल से सुन ज़रा तू भी तो मुद्द'आ-ए-इ'श्क़
यादगार शाह वारसी
शे'र
लज़्ज़तें दीं ग़ाफ़िलों को क़ासिम-ए-हुशियार नेइ’श्क़ की क़िस्मत हुई दुनिया में ग़म खाने की तरह
ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़
शे'र
लज़्ज़तें दीं ग़ाफ़िलों को क़ासिम-ए-हुशियार नेइ’श्क़ की क़िस्मत हुई दुनिया में ग़म खाने की तरह
ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़
ग़ज़ल
बुतान-ए-हश्र ताज़ा रँग भर दीं दाग़-ए-इस्याँ मेंमज़ा दे जाए मेरा दाग़-ए-इस्याँ मेरे दामाँ में
रियाज़ ख़ैराबादी
शे'र
अगर चाहूँ निज़ाम-ए-दहर को ज़ेर-ओ-ज़बर कर दूँमिरे जज़्बात का तूफ़ाँ ज़मीं से आसमाँ तक है
वली वारसी
ग़ज़ल
बयाँ अदना सा फ़ैज़-ए-बै’अत पीर-ए-मुग़ाँ कर दूँजो गर जाऊँ मैं सज्दे में ज़मीं को आसमाँ कर दूँ
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब
ग़ज़ल
सज्दा करते थे जहाँ वो सज्दा-गाहें छोड़ दींतेरे पीछे चल पड़े तो अपनी राहें छोड़ दीं
मुमताज़ अली मुमताज़
पद
बे-ख़बरी में दिन ये गुज़रे सारे गुज़रे साल और माह
बे-ख़बरी में दिन ये गुज़रे सारे गुज़रे साल और माहगई जवानी पीरी आई रहा न बाक़ी सिवा कराह
कवि दिलदार
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
आशिक़-ए-दीन-दार बायद ता कि दर्द-ए-दीं कशदसुर्मः-ए-तस्लीम रा दर चश्म-ए-रौशन-बीं कशद