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शे'र
जिगर मुरादाबादी
सूफ़ी शब्दावली
(हर्ष) ׃आध्यात्मिक प्रेम के फलस्वरूप जो आत्मिक आनंद प्राप्त होता है, उसे ‘तरब’ कहते हैं.
ग़ज़ल
ये सामान-ए-तरब या रब मुझे किस ढब मुहय्या होजुनूँ शोर-ओ-फ़ुग़ाँ 'उर्यां-तनी यसरिब का सहरा हो
शाह फ़ज़्ल-ए-रसूल बदायूँनी
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शे'र
ऐ 'तुराब' जब गुल-बदन के दर्द सूँ गिर्यां कियादामन-ए-गुल पर मिरा हर अश्क दुर्दाना हुआ
तुराब अली दकनी
कलाम
'अक़्ल का हुक्म है उधर तू न जाना ऐ दिल'इश्क़ कहता है कि फिर वाँ से न आना ऐ दिल
शाह तुराब अली क़लंदर
ग़ज़ल
ऐ दिल-ए-ग़फ़ल-तज़दा बेदार हो सोता है क्याउ'म्र आख़िर हो चुकी अब देखे होता है क्या
शाह तुराब अली क़लंदर
दकनी सूफ़ी काव्य
ऐ पंच-भूत क्या है चुप इतना साँसा
ऐ पंच-भूत क्या है चुप इतना साँसाघड़ी में जो तोला घड़ी में जो मासा