ऐ पंच-भूत क्या है चुप इतना साँसा
ऐ पंच-भूत क्या है चुप इतना साँसा
घड़ी में जो तोला घड़ी में जो मासा
बेगाना करोगे चरण से थी आसा
न रहिए उपामा ना रहिए उदासा
अरे मन उसे क्या है दुनिया का झाँसा
लिया हात में भीक का जिस से काँसा
अमीराँ सो बेहतर फ़कीराँ कलाते
समज फ़र्श मख़मल बगंबर बिछाते
मनका कोई खाए तो कोई मानिक खाते
हो कर ख़ाक-दर-ख़ाक शाही जगाते
अरे मन उसे क्या है दुनिया का झाँसा
लिया हात में भीक का जिस ने काँसा
जो बाँदा लँगोटा लगा ख़ाक तन कूँ
दिया छोड़ एक बार जब उन वतन कूँ
जला इश्क़ की बात में माल-ओ-धन कूँ
रखी कास ना पास हरगिज़ कफ़न कूँ
अरे मन उसे क्या है दुनिया का झाँसा
लिया हात में भीक का जिस से काँसा
गदा माँगे खाता है टुकड़े घर-घर
लगा कर लँगोटा कलाता क़लंदर
ओड़े गूदड़ी होर बिछावे बगंवर
रखे फ़ख़्र दायम तू शाहा के ऊपर
अरे मन उसे क्या है दुनिया का झाँसा
लिया हात में भीक का जिस से काँसा
फकीरो में क्या फ़िक्र दरकार है रे
हमेशा तेरा गर्म बाज़ार है रे
ओ रज़्ज़ाक़ मुतलक़ ख़रीदार है रे
हर-यक जा पो हादी सा दातार है रे
अरे मन उसे क्या है दुनिया का झाँसा
लिया हात में भीक का जिस ने काँसा
न किसी के भले बोलने की ख़ुश-हाली
न परवा-ए-तहसीन है ना डर व गाली
ना चाहें गर्म लिहाफ़ ना बज्म-ए-निहाली
न दिल में दर्द कुछ ग़म कहत साली
अरे मन उसे क्या है दुनिया का झाँसा
लिया हात में भीक का जिस ने काँसा
हज़ाराँ सूँ पैवंद किए गूदड़ी पर
रखा नाम उस का व बिस्तर
समझता है उस कूँ व अज़ किस्वत-ए-ज़र
न किस ठग का विश्वास ना चोर का डर
अरे मन उसे क्या है दुनिया का झाँसा
लिया हात में भीक का जिस ने काँसा
गदा कासः-ए-बंग जिस वक़्त चढ़ावे
मैं पुर्तगाली न ख़ातिर में लावे
बिछा कर बगंबर शहंशाह फलावे
ओ तकिया-नशीं कईं न जावे न आवे
अरे मन उसे क्या है दुनिया का झाँसा
लिया हात में भीक का जिस ने काँसा
करम सू गदा हात जिस का पकड़ते
बसर मुफ़्लिसी तख्त-ए-शाही ओ चड़ते
गदा किस सू हरगिज़ न लड़ते-झगड़ते
न दुनिया-ओ-दौलत कूँ देखत अकड़ते
अरे मन उसे क्या है दुनिया का झाँसा
लिया हात में भीक का जिस ने काँसा
जो दुनिया में साबित मुहिब्ब-ए-अली है
सदा उस के हक़ में फ़क़ीरी भली है
गदाई करे होर कलावे वली है
उसे जग की रुस्वाई में कामिली है
अरे मन उसे क्या है दुनिया का झाँसा
लिया भीक का हात में जिस ने काँसा
दिया आज सो ओ ई चे फिर देवेगा कल
नको हो तूँ चुप कल कू धोका सू बेकल
समज कर सदा बोरिया फ़र्श मख़मल
'तुराब' का सुख़न ये सदा जान अफ़ज़ल
अरे मन उसे क्या है दुनिया का झाँसा
लिया हात में भीक का जिस ने काँसा
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