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दकनी सूफ़ी काव्य
क़िस्सा रूह-अफ़्ज़ा और रिज़वान-शाह
जिते हैं हिकायत के राबियाँयो क़िस्सा उनों यूँ किए है बयाँ
फ़ायज़
दकनी सूफ़ी काव्य
क़िस्सा परहेज़-गार-ओ-शैतान
कहूँ एक नसीहत अजब ख़ूब-तरपहले पंद सुनो जीव की कान धर
अली रहमती
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क़िस्सा काव्य
हीर वारिस शाह
1. हमदअव्वल हमद ख़ुदाय दा विरद कीजे, इशक कीता सू जग्ग दा मूल मियां ।
वारिस शाह
कुंडलिया
बंदा बाजी झूठ है, मत सांची करमान।
बंदा बाजी झूठ है, मत सांची करमान।कहां बीरबल गंग है, कहां अकब्बर खान।।
दीन दरवेश
कुंडलिया
माया-माया करत है, खरच्या खाया नाहिं।
माया-माया करत है, खरच्या खाया नाहिं।सो नर ऐसे जाहिंगे, ज्यों बादर की छाहिं।।
दीन दरवेश
कुंडलिया
बंदा बहुत न फूलिए, खुदा खियेगा नहिं।
बंदा बहुत न फूलिए, खुदा खियेगा नहिं।जोर जुलम कीजै नहीं, मिरतलोक के माहिं।।
दीन दरवेश
कुंडलिया
गड़े नगारे कूचकै, छिनभर छाना नाहिं।
गड़े नगारे कूचकै, छिनभर छाना नाहिं।कौन आज को काल को, पाव पलक के मांहि।।
दीन दरवेश
कुंडलिया
हिंदू कहें सो हम बड़े, मुसलमान कहें हम्म ।
हिंदू कहें सो हम बड़े, मुसलमान कहें हम्म ।एक मूंग दो झाड़ हैं, कुण ज्यादा कुण कम्म।।
दीन दरवेश
सूफ़ी लेख
क़व्वालों के क़िस्से
संगीतकार अपने पहले और बाद के युगों के बीच एक पुल का कार्य करते हैं। आने