परिणाम "radd-e-amal"
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आमना अमल इदरीसी
हम करें बात दलीलों से तो रद्द होती हैउस के होंटों की ख़मोशी भी सनद होती है
अव्वल ख़लल ऐ ख़्वाजः तुरा अंदर अमल आयदफ़र्दा कि ब-पेश-ए-तू रसूल-ए-अजल आयद
नेक-ओ-बद दो ही अमल जाते हैं दम के साथ साथक़ब्र में शामिल मेरे ये बन के रहबर दो गए
पोस्ती क्यूँ रोयाचौकीदार क्यूँ सोया
रद्द-ए-अमलرد عمل
Reaction
Taqleed Aur Amal Bil Hadees
मोह्सिन्नुल मुल्क
धर्म-शास्त्र
1909
Rooidaad
शाह अबुल ख़ैर
1935रिपोर्ताज
Rouedad
हकीम सय्यद फ़ख़रुद्दीन अहमद जाफ़री
1973रिपोर्ताज
Rudad
क़ारी मोहम्मद यहया
1976रिपोर्ताज
1978रिपोर्ताज
Ruedad 1969-70
अननोन ऑथर
1970अन्य
Amal Nama
सर सैयद रज़ा अली
1943आत्मकथा
Irshadat-e-Shaikh Jeelani Aur Hamare Aamal
मोहम्मद हनीफ़ यज़दानी
1968धर्म-शास्त्र
Dau Salah Rudad Anjuman Khuddamul-Sufiya
करम इलाही करीम
1925सूफ़ीवाद / रहस्यवाद
Rasail-e-Shah Waliullah R. A.
A Maldives Celebration
रोयसटन एलिस
1997
Maqaam-e-Mulla Faqeer R. A.
शब्बीर हसन ख़ाँ
1991सूफ़ीवाद / रहस्यवाद
इजलास-ए-मैसूर की रूदाद और बम्बई से मैसूर तक कौंसिल की सरगर्मियों की रिपोर्ट
A Gazetteer of Kashmir
चार्ल्स एलिसन बैट्स
1980
वह जो ज्ञान प्राप्त करता है और उस पर अमल नहीं करता, वह ऐसे है जो ज़मीन तो जोतता है (बैल चलाता है) परन्तु बीज नहीं बोता।
सहरश गुल के इस्ति’आरे हैंहर तरफ़ यार के नज़ारे हैं
बा'द तेरे भी क्या कभी होगीये मोहब्बत तो आख़िरी होगी
आदमी का ख़राब हो जानाया'नी ’इज़्ज़त-मआब हो जाना
यही ईमान है अपना यही अपना अ’मल 'काविश'सनम के इक इशारे पर हर इक शय को लुटा देना
साँस से जिस्म लड़ रहा है मिराहाँ तनफ़्फ़ुस बिगड़ रहा है मिरा
ख़ामोश ही रहते हैं शिकायत नहीं करतेआँसू ये मिरे मुझ से बग़ावत नहीं करते
मय ख़ुर कि न 'इल्म दस्त गीरद न 'अमलइल्ला करम-ओ-रहमत-ए-हक़-ए-’अज़्ज़-ओ-जल
'इश्क़ दुश्वार है हमारे बीचहाँ मगर प्यार है हमारे बीच
है इ'श्क़ की दुनिया में भी अटल क़ानून अ'मल और रद्द-ए-अमलदिल लूट के जाने वाले भी दिल अपना गँवाए बैठे हैं
हद से बढ़ जाती है ग़मी अक्सररास आती नहीं ख़ुशी अक्सर
हयात मेरी तुम्हारे ही ग़म शुमार करेदिल शिकस्ता भी हर वक़्त ज़ार-ज़ार करे
बैठे हुए हैं राह में तूफ़ाँ लिए हुएहम दिल में एक शहर-ए-बयाबाँ लिए हुए
'इश्क़ में क्या हैं मफ़ादात तुम्हें क्या मा'लूमहैं जुदा उस की रिवायात तुम्हें क्या मा'लूम
इस क़दर याद है बस इ'श्क़ की रूदाद 'हयात'जैसे देखा था कभी ख़्वाब-ए-परेशाँ कोई
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