अव्वल ख़लल ऐ ख़्वाजः तुरा अंदर अमल आयद
अव्वल ख़लल ऐ ख़्वाजः तुरा अंदर अमल आयद
फ़र्दा कि ब-पेश-ए-तू रसूल-ए-अजल आयद
तुम्हारे जीवन में जो सब से पहली रुकावट होती है, जो सब से पहला विघ्न आ उपस्थित होता है, वह उस समय होता है जब मृत्यु का दूत आकर सिर पर सवार होता है।
ज़ाइल शुद: गीर ईं हमः मुल्क ब-यक-बार
आँ-दम कि रसूल-ए-मुल्क-ए-लमयज़ल आयद
प्रत्येक वर्ष तू उसी संसार में एक नया भवन तैयार करता है और प्रत्येक दिन तेरे हृदय में कोई न कोई नया काम करने की इच्छा होती है।
हर साल यके काख़ कुनी दीगर व दर वै
हर रोज़ तुरा आरज़ू-ए-नव-अ'मल आयद
सनाई ने यह बात इस लिये कही है कि बहुधा यह देखन में आता है कि मंत्री के न्याय में भी अन्तर पड़ जाता है।
ज़ीं काख़ बर आवर्द: ब-उ'यूक़ हम इमरोज़
हक़्क़ा कि हमी बू-ए-रुसूम-ओ-त'लल आयद
शादी-ओ-ग़मत ज़े-अब्लही-ओ-हिर्स फ़रावाँ
दायम ज़े-नुजूम-ओ-ज़े-हिसाब-ए-जुमल आयद
ऐ बस कि न-बाशी तू-ओ-ऐ बस कि बरीं चर्ख़
ब-तू ज़ोहल-ओ-ज़ोहर: ब-हूत-ओ-हमल आयद
हर-चंद तू तमअ' दारी क़ायद ज़े-कवाकिब
वयहक हम: अज़ हुक्म-ए-क़ज़ा-ए-अज़ल आयद
रोज़े की ब-दीवाँ मसलन देर-तर आई
तरसी की दर असबाब-ए-विज़ारत ख़लल आयद
गुफ़्तम 'सनाई' कि ब-दीवान-ए-विज़ारत
ऐ बस कि दीवान-ए-विज़ारत बदल आयद
- पुस्तक : दीवान-ए-सनाई ग़ज़नवी (पृष्ठ 178)
- रचनाकार : हकीम सनाई
- प्रकाशन : इंतिशारात-ए-सनाई, ईरान (1983)
- संस्करण : 7th
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