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अव्वल ख़लल ऐ ख़्वाजः तुरा अंदर अमल आयद

हकीम सनाई

अव्वल ख़लल ऐ ख़्वाजः तुरा अंदर अमल आयद

हकीम सनाई

MORE BYहकीम सनाई

    अव्वल ख़लल ख़्वाजः तुरा अंदर अमल आयद

    फ़र्दा कि ब-पेश-ए-तू रसूल-ए-अजल आयद

    तुम्हारे जीवन में जो सब से पहली रुकावट होती है, जो सब से पहला विघ्न उपस्थित होता है, वह उस समय होता है जब मृत्यु का दूत आकर सिर पर सवार होता है।

    ज़ाइल शुद: गीर ईं हमः मुल्क ब-यक-बार

    आँ-दम कि रसूल-ए-मुल्क-ए-लमयज़ल आयद

    प्रत्येक वर्ष तू उसी संसार में एक नया भवन तैयार करता है और प्रत्येक दिन तेरे हृदय में कोई कोई नया काम करने की इच्छा होती है।

    हर साल यके काख़ कुनी दीगर दर वै

    हर रोज़ तुरा आरज़ू-ए-नव-अ'मल आयद

    सनाई ने यह बात इस लिये कही है कि बहुधा यह देखन में आता है कि मंत्री के न्याय में भी अन्तर पड़ जाता है।

    ज़ीं काख़ बर आवर्द: ब-उ'यूक़ हम इमरोज़

    हक़्क़ा कि हमी बू-ए-रुसूम-ओ-त'लल आयद

    शादी-ओ-ग़मत ज़े-अब्लही-ओ-हिर्स फ़रावाँ

    दायम ज़े-नुजूम-ओ-ज़े-हिसाब-ए-जुमल आयद

    बस कि न-बाशी तू-ओ-ऐ बस कि बरीं चर्ख़

    ब-तू ज़ोहल-ओ-ज़ोहर: ब-हूत-ओ-हमल आयद

    हर-चंद तू तमअ' दारी क़ायद ज़े-कवाकिब

    वयहक हम: अज़ हुक्म-ए-क़ज़ा-ए-अज़ल आयद

    रोज़े की ब-दीवाँ मसलन देर-तर आई

    तरसी की दर असबाब-ए-विज़ारत ख़लल आयद

    गुफ़्तम 'सनाई' कि ब-दीवान-ए-विज़ारत

    बस कि दीवान-ए-विज़ारत बदल आयद

    स्रोत :
    • पुस्तक : दीवान-ए-सनाई ग़ज़नवी (पृष्ठ 178)
    • रचनाकार : हकीम सनाई
    • प्रकाशन : इंतिशारात-ए-सनाई, ईरान (1983)
    • संस्करण : 7th

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