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फ़ारसी सूफ़ी काव्य
गर 'आशिक़ी अज़ जान-ओ-दिल जौर-ओ-जफ़ा-ए-यार कशवर ज़ाँ-कि तु 'आशिक़ नः-ई रौ सुख़रः मी-कुन ख़ार कश
रूमी
फ़ारसी कलाम
साक़िया मय देह कि मा दुर्दी-कश-ए-मय-ख़ान:एमबा ख़राबात आश्ना व अज़ ख़िरद बेगान:एम
सादी शीराज़ी
ग़ज़ल
आज इक इक बादा-कश मसरूर मय-ख़ाने में हैताज़ा ताज़ा इसके उसके सब के पैमाने में है
पीर नसीरुद्दीन नसीर
कलाम
काश मिरी जबीन-ए-शौक़ सज्दों से सरफ़राज़ होयार की ख़ाक-ए-आस्ताँ ताज-ए-सर-ए-नियाज़ हो
बेदम शाह वारसी
ग़ज़ल
मुसख़्ख़र कर चुका हर एक मय-कश को वक़ार अपनातिरी मस्ती पे सब्क़त ले गया साक़ी ख़ुमार अपना
मंज़र सिद्दीक़ी
ना'त-ओ-मनक़बत
ऐ मेरे दरिया-दिल साक़ी मीर-ए-मय-ख़ाना अ’ब्दुल-हक़अपने मय-ख़्वारों का सदक़ा भर दे पैमाना अ’ब्दुल-हक़
बेदम शाह वारसी
फ़ारसी कलाम
साक़ी बिया कज़ फ़ैज़-ए-मय दारम हवस-हा दर बग़लता कै निहाँ दारी ज़े-मन ईं जाम-ओ-मीना दर बग़ल