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दोहा
विनय मलिका - जैसे सूरज के उदय सकल तिमिर नस जाय
जैसे सूरज के उदय सकल तिमिर नस जायमेहर तुम्हारी हे प्रभु क्यूँ अज्ञान रहाय
दया बाई
शबद
आरती व भोग - मन बच क्रम मोरे राम कि सेवा सकल लोक देवन को देव
मन बच क्रम मोरे राम कि सेवा सकल लोक देवन को देवाबिनु जल जल भरि भरि नहवावों बिना धूप के धूप धुपावों
धरनीदास जी
दोहा
विनय मलिका - कलप बृच्छ के निकट हीं सकल कल्पना जाय
कलप बृच्छ के निकट हीं सकल कल्पना जाय'दयादास' तातें लई सरन तिहारी आय
दया बाई
समस्त