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Sufinama

उपदेश - मन तुम छोड़हु सकल उदासी

भीखा साहेब

उपदेश - मन तुम छोड़हु सकल उदासी

भीखा साहेब

मन तुम छोड़हु सकल उदासी

राम को नाम तीर्थ घट ही में दिल द्वारिका काया कासी

करते जग अपने कर बाँधो तिरगुन डोरि की फाँसी

भिन्न भिन्न निज गुन बरतावहिं काहू कै कछु सिरासी

तेहि तें कनक कामनी अरूझो हरि सों सदा निरासी

अंतै नैन स्रवन अंतै है सरना अंतै साँसी

ब्रह्म सरूप अनूप भूप बर सोभा सुख के रासी

केवल आतम राम बिराजत परमातम अबिनासी

अपरंपार अखंडित बानी अकथ कथो नहिं जासी

सो परभाब प्रगट सतसंगति जोग जोगत अभ्यासी

सतगुरू ज्ञान बान जेहिं मारयो लगी मरम उर गाँसी

घायल घरुमित उलटि गयों त्तों चेतन उदित प्रकासी

जग समुद्र नौका नर देही कनिहर गुरू बिस्वासी

अमृत हरि को नाम सजीवन चाखत छकि अघासी

बेद बेदांत संत मुख भाखहिं धन्य जो नाम उपासी

मन क्रम बचन जु हरि रँग राते तजे जगत उपहाँसी

जो एकै ब्यापक आतम तौ को ठाकुर को दासी

ब्रह्म स्वरूप है साहब सेवक दिब्य दृष्टि है ख़ासी

अलख राम को लखै सोई जन जो भ्रम भीति को ढ़ासी

सोइ जोगी जोगेसुर ब्यानी जा की रहनि अकासी

हरि सों प्रीति निरंतर दिन दिन छूटि भूख प्यासी

सुरति मिली अवलोकि निरति महँ कहँ आवे कहँ जासी

त्यागि सकल परपंच बिषै हरि ताहि मिलै अन्यासी

निरमोही निर्बान निरंजन निरममता सन्यासी

मोहन भोग सेख लै बैठो सुन्न में आसन डासी

'भीखा' पावत मगन रैन दिन टाटक होत बासी

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