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ग़ज़ल
दलील-ए-सुब्ह रौशन है सियह शाम-ए-अलम साक़ीख़ुदा का बा'द हर मुश्किल के होता है करम साक़ी
वासिफ़ आलम मोअज़्ज़मी
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
तुर्क-ए-सफ़ेद-रूए- व सियह-चश्म-ओ-लालः-रंगमिस्लत नज़ाद मादर-ए-अय्याम शोख़-ओ-शंग
अमीर ख़ुसरौ
बैत
सुर्मः जो ज़ेब-ए-चश्म-ए-सियह फ़ाम हो गया
सुर्मः जो ज़ेब-ए-चश्म-ए-सियह फ़ाम हो गयाफ़ित्नः-सवार-ए-अबलक़-ए-अय्याम हो गया
निसार अकबराबादी
ग़ज़ल
देख कर ज़ुल्फ़-ए-सियह मफ़्तून-ओ-शैदा हो गयाऐ दिल-ए-दीवाना क्या तुझ को ये सौदा हो गया
शाह तुराब अली क़लंदर
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उस सियह-बख़्त की रातें भी कोई रातें हैंख़्वाब-ए-राहत भी जिसे ख़्वाब-ए-परेशाँ हो जाए
बेदम शाह वारसी
दोहा
रहिमन थोरे दिनन को कौन करे मुँह सियाह
रहिमन थोरे दिनन को कौन करे मुँह सियाहनहीं छलन को परतिया नहीं करन को ब्याह
रहीम
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
ऐ दस्तत अज़ निगार सफेद-ओ-स्याह-ओ-सुर्ख़वे चश्मत अज़ ख़ुमार सफ़ेद-ओ-स्याह-ओ-सुर्ख़