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ग़ज़ल
कभी पूछा न ऐ साजन जो क्या तुझ पर गुज़रती हैतेरी फ़ुर्क़त से ऐ प्यारे न जीती है न मरती है
मीराँ शाह जालंधरी
कलाम
दो दिन की तन-आसानी के लिए तक़दीर का शिकवा कौन करेरहना ही नहीं जब दुनिया में दुनिया की तमन्ना कौन करे
शाह महमूदुल हसन
ग़ज़ल
साँझ सवेरे नैन बिछा कर राह तकूँ मैं साजन कीराम ही जाने कब चमकेगी क़िस्मत मेरे आँगन की