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हुस्न-मह्व-ए-रंग-ओ-बू है इ’श्क़ ग़र्क़-ए-हाय-ओ-हूहर गुलिस्ताँ उस तरफ़ है हर बयाबाँ इस तरफ़
ज़हीन शाह ताजी
ग़ज़ल
है जहाँ के रंग-ओ-बू से तिरा हुस्न आश्कारातिरे दम से ही मुनव्वर है फ़लक का ये नज़ारा
ख़्वाजा शायान हसन
ना'त-ओ-मनक़बत
रहा जोश-ए-मोहब्बत का यूँ ही गर मौजज़न तूफ़ाँफ़िदा हो जाएँगे हम आप पर या हज़रत-ए-जीलाँ
अ’ली इमाम ख़ान
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उसी का है रंग यासमन में उसी की बू-बास नस्तरन मेंजो खड़के पत्ता भी इस चमन में ख़याल आवाज़ आश्ना कर
अमीर मीनाई
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
ऐ बाद-ए-मुश्क-बू ब-गुज़र सू-ए-आँ-निगारब-कुशा गिरह ज़े-ज़ुल्फ़श व बू-ए-ब-मन बयार
हाफ़िज़
ग़ज़ल
बुतान-ए-हश्र ताज़ा रँग भर दीं दाग़-ए-इस्याँ मेंमज़ा दे जाए मेरा दाग़-ए-इस्याँ मेरे दामाँ में
रियाज़ ख़ैराबादी
राग आधारित पद
होरी राग धनाश्री- मैं तो खेलूँ प्रभु के संग होरी रँग-भरी
मैं तो खेलूँ प्रभु के संग होरी रँग-भरीजित देखूँ तित रम रहौ रे
सहजो बाई
दोहा
दधि-मन देत तरंग नित रंग रंग बिस्तार
दधि-मन देत तरंग नित रंग रंग बिस्तारकोउ तरंग मोती सहित काहु संग सेवार