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ना'त-ओ-मनक़बत
ऐ सल्ले-'अला दिल की दुनिया कुछ और ही पाई जाती हैसरकार-ए-दो-’आलम की सूरत आँखों में समाई जाती है
शकील बदायूँनी
बैत
अब तलक तुझ पे न इस राज़ का इज़हार किया
अब तलक तुझ पे न इस राज़ का इज़हार कियाजान आती है मेरी जान जो तू आती है
शाह तक़िउद्दिन मनेरी
कलाम
जुनूँ वज्ह-ए-शिकस्त-ए-रंग-ए-महफ़िल होता जाता हैज़माना अपने मुस्तक़बिल में दाख़िल होता जाता है
सीमाब अकबराबादी
कलाम
एह तन रब्ब सच्चे दा हूजरा विच पा फ़क़ीरा झाती हून कर मिन्नत ख़्वाज ख़िज़र दी तैं अंदर आब हयाती हू
सुल्तान बाहू
कलाम
एह तन रब सच्चे दा हुजरा विच पा फ़कीराँ झाती हून कर मिन्नत ख़्वाजा ख़िज़र दी तैं अंदर आब हयाती हु
सुल्तान बाहू
कलाम
फ़ना का जाम ऐ साक़ी मैं पी-पी लूँ तू भर-भर देबक़ा की मय से आँखें मिस्ल-ए-नर्गिस-ए-मस्त कर-कर दे
अलाउद्दीन जलाली
फ़ारसी कलाम
रबूद जाँ पस-ए-दिल चश्म-ए-'उज़्र ख़्वाह-ए-कसेशिकायतेस्त ब-सद 'अफ़्व अज़ निगाह-ए-कसे