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ना'त-ओ-मनक़बत
मतला-ए’-फ़ाराँ से चमका वो ’अजब-तर आफ़ताबदेर तक देखा किया हैरत से छुप कर आफ़ताब
अदीब सहारनपुरी
ना'त-ओ-मनक़बत
कौन सा खोलूँ वरक़ मौला तिरी ज़ेबाई कातेरी ख़ल्लाक़ी का एहसाँ का पज़ीराई का
आरिफ़ हसन सिद्दीक़ी
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सूफ़ी शब्दावली
इस से उमूमन रूह मुराद ली जाती है क्योंकि रूह बदन-ए-इन्सानी में आफ़ताब के और नफ़्स महताब के मुशाबिह है।
ग़ज़ल
न ख़्वाहाँ ताज-ए-ख़ुसरव का न मैं तख़्त-ए-सिकंदर कामुक़द्दर उस जगह ले चल भिकारी हूँ मैं जिस दर का
फ़ज़लुर रहमान माह
ना'त-ओ-मनक़बत
ब-ख़ूबी मेहर-ए-ताबाँ माह से ता-ब-माही होबड़ा क्या उस से रुत्बा हो कि महबूब-ए-इलाही हो
अज्ञात
ना'त-ओ-मनक़बत
शाह फ़ाइक़ शहबाज़ी
फ़ारसी कलाम
ऐ माह-ए-रास्तीं ज़े-शबिस्तान-ए-कीस्तीवाए आफ़ताब-रूए ब-गो ज़ान-ए-कीस्ती
शैख़ जमालुद्दिन हान्सवी
फ़ारसी कलाम
ऐ माह-ए-आ'लम सोज़-ए-मन अज़ मन चरा रंजीद:ईवै शम-ए’-शब अफ़्रोज़-ए-मन अज़ मन चरा रंजीद:ई
सादी शीराज़ी
फ़ारसी कलाम
ऐ माह-ए-मन-ओ-शाह-ए-सिपाह-ए-हम: ख़ूबाँख़ूबाँ हम: शाहंद-ओ-तू-शाह-ए-हम: ख़ूबाँ