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Sufinama

अल्लाह रे रू-ए-मेह्र-ए-'अरब है माह से बढ़ कर जिस में दमक

शाह फ़ाइक़ शहबाज़ी

अल्लाह रे रू-ए-मेह्र-ए-'अरब है माह से बढ़ कर जिस में दमक

शाह फ़ाइक़ शहबाज़ी

MORE BYशाह फ़ाइक़ शहबाज़ी

    अल्लाह रे रू-ए-मेह्र-ए-'अरब है माह से बढ़ कर जिस में दमक

    गर मेह्र कहूँ है तर्क-ए-अदब है दम से उसी के उस में चमक

    वल्लैल है वस्फ़-ए-ज़ुल्फ़-ए-दुता हज़रत का सरापा क्या कहना

    क़ौसैन-ए-दो-अबरू की है सना उस मद्ह से हैं हैरान मलक

    दंदाँ की सिफ़त यासीं है अगर तो वो लब-ए-शीरीं है कौसर

    आँखों को कहूँ मा-ज़ाग़ बसर शर्मिंदा हो जिस से चश्म-ए-फ़लक

    लाई है शमीम-ए-ज़ुल्फ़-ए-दोता तैबा की गली से बाद-ए-सबा

    उस बू से मशाम अपना है बसा भाती नहीं कुछ फूलों की महक

    मे'राज की शब जिब्रील-ए-अमीं यूँ कहने लगे सिदरह की क़रीं

    अब आगे बढ़ूँ ये ताब नहीं क्यूँ पाँव अपने जाएँ अटक

    फ़ुर्क़त में हुआ जब दिल मुज़्तर उम्मीद ने तस्कीं दी बढ़ कर

    हो जाएगा उस चौखट पे गुज़र लिल्लाह इतना सर को पटक

    जी हिन्द में अब लगता ही नहीं लिल्लाह बुला लो मुझ को वहीं

    मिल जाए जगह रौज़ा के क़रीं आख़िर ये ग़म-ए-दूरी कब तक

    कुछ काम कर आह-ए-सहरी हो दीद रुख़-ए-गुलफ़ाम कभी

    फ़रहत हो दिल पर शौक़ को भी आँखों को भी हासिल हो ठंडक

    'फ़ाइक़' है तेरा मद्ह-सरा करता है ब-सद ज़ारी ये दु'आ

    जाए नज़र महबूब-ए-ख़ुदा रुख़्सार-ए-निको की एक झलक

    स्रोत :
    • पुस्तक : Armaghan-e-Faaeq

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