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सूफ़ी लेख
क़व्वाली
क़व्वाली एक फ़न है या’नी एक सिंफ़-ए- मौसीक़ी जिसमें चंद ख़ुश-गुलू मुश्तरका तौर पर बा-ज़ाबता राग
अकमल हैदराबादी
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क़व्वाली के मूजिद
सारी दुनिया इस बात पर मुत्तफ़िक़ है कि क़व्वाली हज़रत अमीर ख़ुसरो की ईजाद है,’अह्द-ए-ख़ुसरो से
अकमल हैदराबादी
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मूजिद-ए-क़व्वाली
मशाहीर अह्ल-ए-क़लम इस बात पर मुत्तफ़िक़ हैं कि क़व्वाली की तर्ज़ अमीर ख़ुसरो की ईजाद है।
अकमल हैदराबादी
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क़व्वाली की ज़बान
क़व्वाली का तीसरा अहम जुज़्व मुरक्कब है ज़बान। अपनी ज़रूरियात के पेश-ए-नज़र हम मौसीक़ी में जो
अकमल हैदराबादी
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क़व्वाली और समा
जब हम क़व्वाली पर ब-हैसियत-ए-फ़न बह्स करते हैं और इसकी ईजाद-ओ-इर्तिक़ा में फ़न्नी उरूज की बात
अकमल हैदराबादी
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क़व्वाली के मज़ामीन
क़व्वाली के अहम-तरीन अज्ज़ा-ए-मुरक्कब तीन हैं। मज़ामीन, मौसीक़ी और ज़बान। इस मुरक्कब में क़ौमी यक-जहती की
अकमल हैदराबादी
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क़व्वाली और सहाफ़त
सहाफ़त में मज़हबिय्यात के लिए बहुत कम गुंजाइश है और बद-नसीबी से क़व्वाली ‘उमूमन मज़हबी कालम
अकमल हैदराबादी
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रेडियो और क़व्वाली
हिन्दोस्तान में रेडियो बीसवीं सदी के इब्तिदाई दहों में पहुंचा, यही वो ज़माना था जबकि क़व्वाली
अकमल हैदराबादी
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क़व्वाली और मूसीक़ी
क़व्वाली की बुनियाद मूसीक़ी पर नहीं बल्कि शाइ’री पर है या'नी अल्फ़ाज़-ओ-मआ’नी पर लेकिन क़व्वाली चूँकि
अकमल हैदराबादी
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क़व्वाली और गणपति
गणपति महाराष्ट्र का एक ऐसा त्यौहार है जिसे यहाँ के हिंदू बाशिंदे हर साल चौथी चतुर्थी
अकमल हैदराबादी
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क़व्वाली और फ़िल्म
दुनिया-भर में ख़ामोश फ़िल्मों की तैयारी और उन्हें दिखाने का सिलसिला 1850 के आस-पास शुरू’ हुआ।